हताश!
निराश!
अकेली सुनसान!
राहों पर
मैं दौड़ती जा रही थी!
बेतहाशा,परेशान
मंजिल की तलाश में
!!
पहाड़ों ने रोका
समंदर ने टोका!
कंकरीली राहों ने छलनी किया!
पथरीली पगडंडियों ने लहू लुहान किया!
सूरज से निकली आग
धरती की उष्ण अथाह,
झुलस गई उम्मीदें
चिथरे हुए हौसले
खाइयों ने शुरू की
अंतहीन सिलसिला!
नियति ने फैलाये
भंवर और दलदल का चक्रव्यूह।।
हार गई,टूट गई
अपनी ही सांसों से रुठ गई!!
तभी!
सामने एक वृक्ष दिखा
पतझड़ का मारा हुआ
अपनों का उजाड़ा हुआ!
वो ठूंठ मुझे
अपने जेेसा लगा
उसके नीचे बैठ गई
सफर खत्म सा था,
"तभी"
वृक्ष का आखिरी पत्ता गिरा
"बोला"
"मैं अंतिम हूं अंत नहीं"
मैं उठी
दौर परी मंजिल की ओर ।।
#सोनी चौधरी 😊🙏
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