पटना का प्राचीन नाम
पाटलिपुत्र (पटना) का स्वर्णिम अतीत !!!
पटना नाम के संदर्भ में कहा जाता है कि यह
पटनदेवी (एक हिन्दू देवी) से प्रचलित हुआ है।
एक अन्य मत के अनुसार यह नाम संस्कृत
के पत्तन से आया है जिसका अर्थ बन्दरगाह होता है।
मौर्यकाल के यूनानी इतिहासकार मेगास्थनिज
ने इस शहर को पालिबोथरा तथा चीनीयात्री
फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है।
बिहार की राजधानी पटना को सभी
जानते हैं। |
यह दुनिया की एक प्राचीन नगरी रही है।
यही नहीं,बॉलीवुड की कई फिल्मों में इसका नाम भी आ चुका है।
इस शहर को पहले पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था।
यही नहीं,बॉलीवुड की कई फिल्मों में इसका नाम भी आ चुका है।
इस शहर को पहले पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था।
पाटलिपुत्र अर्थात वर्तमान पटना का इतिहास काफी प्राचीन है।
यह हजारों साल प्राचीन शहर है।
इस ऐतिहासिक नगरी में कई ऐसे सम्राट हुए,जिन्होंने अपनी राजधानी पटना में
बनाई और पूरे देश की सत्ता पर राज किया।
इस ऐतिहासिक नगरी में कई ऐसे सम्राट हुए,जिन्होंने अपनी राजधानी पटना में
बनाई और पूरे देश की सत्ता पर राज किया।
लेकिन,क्या आप जानते हैं कि बिहार की राजधानी रही पटना का निर्माण कैसे हुआ ?
इसका नाम पटना कैसे पड़ा ?
इसके इतिहास को जानने के बाद आप भी एक बार चकित हो सकते हैं।
इसका नाम पटना कैसे पड़ा ?
इसके इतिहास को जानने के बाद आप भी एक बार चकित हो सकते हैं।
लोककथाओं के अनुसार,राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपनी रानी
पाटलि के लिये जादू से इस नगर का निर्माण
किया।
पाटलि के लिये जादू से इस नगर का निर्माण
किया।
---ये भी देखे..
इसी कारण नगर का नाम पाटलिग्राम पड़ा।
बाद में इसका नाम पाटलिपुत्र और अब पटना हो गया है।
संस्कृत में पुत्र का अर्थ बेटा तथा ग्राम का अर्थ गांव होता है।
लेकिन,हम आपको बताएंगे कि आखिर कैसे पाटलिपुत्र बना पटना।
बाद में इसका नाम पाटलिपुत्र और अब पटना हो गया है।
संस्कृत में पुत्र का अर्थ बेटा तथा ग्राम का अर्थ गांव होता है।
लेकिन,हम आपको बताएंगे कि आखिर कैसे पाटलिपुत्र बना पटना।
यह ऐतिहासिक नगर पिछली दो सहस्त्राब्दियों में कई नाम पा चुका है,जिसमें पाटलिग्राम,
पाटलिपुत्र,पुष्पपुर,कुसुमपुर,अजीमाबाद
और पटना है।
पाटलिपुत्र,पुष्पपुर,कुसुमपुर,अजीमाबाद
और पटना है।
ऐसा समझा जाता है कि वर्तमान नाम शेरशाह सूरी के समय से प्रचलित हुआ।
किन्तु कैसे और किसने किया पटना का नामकरण।
किन्तु कैसे और किसने किया पटना का नामकरण।
पटना नाम के संदर्भ में कहा जाता है कि यह पटनदेवी (एक हिन्दू देवी) से
प्रचलित हुआ है।
प्रचलित हुआ है।
एक अन्य मत के अनुसार यह नाम संस्कृत
के पत्तन से आया है जिसका अर्थ बन्दरगाह होता है।
के पत्तन से आया है जिसका अर्थ बन्दरगाह होता है।
मौर्यकाल के यूनानी इतिहासकार मेगास्थनिज
ने इस शहर को पालिबोथरा तथा चीनीयात्री फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है।
ने इस शहर को पालिबोथरा तथा चीनीयात्री फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है।
प्राचीन पटना सोन और गंगा नदी के संगम पर स्थित है।
सोन नदी आज से दो हजार वर्ष पूर्व अगमकुंआ से आगे गंगा मे मिलती थी।
सोन नदी आज से दो हजार वर्ष पूर्व अगमकुंआ से आगे गंगा मे मिलती थी।
अभी फिलहाल इन दोनों नदियों का संगम पाटलिग्राम मे गुलाब (पाटली का फूल)
काफी मात्रा में उपजाया जाता था।
काफी मात्रा में उपजाया जाता था।
गुलाब के फूल से तरह-तरह के इत्र,दवा
आदि बनाकर उनका व्यापार किया जाता
था इसलिए इसका नाम पाटलिग्राम हो गया।
आदि बनाकर उनका व्यापार किया जाता
था इसलिए इसका नाम पाटलिग्राम हो गया।
पुरातात्विक अनुसंधानो के अनुसार पटना
का इतिहास 490 ईसा पूर्व से होता है जब हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह या राजगीर से बदलकर
यहां स्थापित की।
का इतिहास 490 ईसा पूर्व से होता है जब हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह या राजगीर से बदलकर
यहां स्थापित की।
यह स्थान वैशाली के लिच्छवियों से संघर्ष
में उपयुक्त होने के कारण राजगृह की
अपेक्षा सामरिक दृष्टि से अधिक
महत्वपूर्ण था।
में उपयुक्त होने के कारण राजगृह की
अपेक्षा सामरिक दृष्टि से अधिक
महत्वपूर्ण था।
उसने गंगा के किनारे यह स्थान चुना और
अपना दुर्ग स्थापित कर लिया।
उस समय से इस नगर का इतिहास लगातार बदलता रहा है।
अपना दुर्ग स्थापित कर लिया।
उस समय से इस नगर का इतिहास लगातार बदलता रहा है।
मौर्य काल के आरंभ में पाटलिपुत्र के अधिकांश राजमहल लकड़ियों से बने थे,पर सम्राट अशोक ने नगर को शिलाओं की संरचना मे तब्दील
किया।
किया।
2500 वर्षों से अधिक पुराना शहर होने का
गौरव दुनिया के बहुत कम नगरों को हासिल है।
गौरव दुनिया के बहुत कम नगरों को हासिल है।
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध अपने अन्तिम दिनों में यहां से गुजरे थे।
उनकी यह भविष्यवाणी थी कि नगर का भविष्य उज्जवल होगा,बाढ़ या आग के कारण नगर को खतरा बना रहेगा।
मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र बन गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़गानिस्तान तक फैल गया था।
मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र बन गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़गानिस्तान तक फैल गया था।
पटना गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित है।
गंगा नदी नगर के साथ एक लम्बी तट रेखा बनाती है।
पटना का विस्तार उत्तर-दक्षिण की अपेक्षा
पूर्व-पश्चिम में बहुत अधिक है।
नगर तीन ओर से गंगा,सोन नदी और पुनपुन नदी नदियों से घिरा है।
नगर से ठीक उत्तर हाजीपुर के पास गंडक नदी भी गंगा में आ मिलती है।
गंगा नदी नगर के साथ एक लम्बी तट रेखा बनाती है।
पटना का विस्तार उत्तर-दक्षिण की अपेक्षा
पूर्व-पश्चिम में बहुत अधिक है।
नगर तीन ओर से गंगा,सोन नदी और पुनपुन नदी नदियों से घिरा है।
नगर से ठीक उत्तर हाजीपुर के पास गंडक नदी भी गंगा में आ मिलती है।
हाल के दिनों में पटना शहर का विस्तार पश्चिम की ओर अधिक हुआ है और यह दानापुर से
जा मिला है।
जा मिला है।
पटन देवी का मंदिर सिद्ध शक्ति स्थल है।
महादेव के तांडव के दौरान सती के शरीर के
51 खंड हुए।
ये अंग जहां-जहां गिरे,वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित की गई।
यहां सती की दाहिनी जांघ गिरी थी।
51 खंड हुए।
ये अंग जहां-जहां गिरे,वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित की गई।
यहां सती की दाहिनी जांघ गिरी थी।
गुलजार बाग इलाके में स्थित बड़ी पटन
देवी मंदिर परिसर में काले पत्थर की बनी
महाकाली,महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमा स्थापित हैं।
इसके अलावा यहां भैरव की प्रतिमा भी है।
देवी मंदिर परिसर में काले पत्थर की बनी
महाकाली,महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमा स्थापित हैं।
इसके अलावा यहां भैरव की प्रतिमा भी है।
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जिस प्रकार मैकाले की शिक्षा पद्धति के दुष्प्रभाव से हमने राम को रामा (RAMA)
कृष्ण को कृष्णा (KRISHNA) ब्रह्म को
ब्रह्मा (BRAHMA)शिव को शिवा (SHIVA)
योग को योगा (YOGA) लिखना आरंभ किया ठीक उसी प्रकार अंग्रेजों के शासनकाल
में पटन (PATAN) को पटना (PATANA = PATNA) लिखा जाने लगा।
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में पटन (PATAN) को पटना (PATANA = PATNA) लिखा जाने लगा।
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,
सदा सर्वदा सुमंगल,,,
वंदेमातरम,,,
जय भवानी,,
जय श्री राम
वंदेमातरम,,,
जय भवानी,,
जय श्री राम
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