त्याग और प्रेम की कहानी.

🙏🕉️🚩 त्याग और प्रेम की कहानी....!!

एक दिन नारद जी भगवान के लोक को जा रहे थे। रास्ते में एक संतानहीन दुखी मनुष्य मिला। उसने कहा- नारद जी मुझे आशीर्वाद दे दो तो मेरे सन्तान हो जाय।

नारद जी ने कहा - " भगवान के पास जा रहा हूँ। उनकी जैसी इच्छा होगी लौटते हुए बताऊँगा।" नारद ने भगवान से उस संतानहीन व्यक्ति की बात पूछी तो उन्होंने उत्तर दिया कि उसके पूर्व कर्म ऐसे हैं कि अभी सात जन्म उसके सन्तान नहीं हो सकती ।

नारद जी चुप हो गये। इतने में एक दूसरे महात्मा उधर से निकले, उस व्यक्ति ने उनसे भी प्रार्थना की, उन्होंने आशीर्वाद दिया और दसवें महीने उसके पुत्र उत्पन्न हो गया।

एक दो साल बाद जब नारद जी उधर से गुजरे तो उन्होंने कहा -
" भगवान ने कहा है कि तुम्हारे अभी सात जन्म तक संतान होने का योग नहीं है।" 

इस पर वह व्यक्ति हँस पड़ा। उसने अपने पुत्र को बुलाकर नारद जी के चरणों में प्रणाम करने को कहा और बोला - देवर्षि ! एक महात्मा के आशीर्वाद से यह पुत्र उत्पन्न हुआ है। अब बताइए ?"

नारदजी को भगवान पर बड़ा क्रोध आया कि व्यर्थ ही वे झूठ बोले। मुझे आशीर्वाद देने की आज्ञा कर देते तो मेरी प्रशंसा हो जाती सो तो किया नहीं,
उलटे मुझे झूठा और उस दूसरे महात्मा से भी तुच्छ सिद्ध करवाया।

नारद कुपित होते हुए विष्णु लोक जा पहुँचे और कटु शब्दों में भगवान की भर्त्सना करने लगे। भगवान ने नारद को सान्त्वना दी और इसका उत्तर कुछ दिन में देने का वायदा किया।

नारद वहीं ठहर गये। एक दिन भगवान ने कहा- नारद लक्ष्मी बीमार हैं, उसकी दवा के लिए किसी सच्चे भक्त का कलेजा चाहिए। तुम जाकर माँग लाओ। नारद कटोरा लिये जगह-जगह घूमते फिरे पर किसी ने न दिया।

अन्त में उस महात्मा के पास पहुँचे जिसके आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न हुआ था। उसने भगवान की आवश्यकता सुनते ही तुरन्त अपना कलेजा निकालकर दे किया। नारद ने उसे ले जाकर भगवान के सामने रख दिया।

भगवान ने उत्तर दिया- " नारद ! यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। जो भक्त मेरे लिए अपना कलेजा दे सकता है, उसके लिए मैं भी अपना विधान बदल सकता हूँ। तुम्हारी अपेक्षा उसे श्रेय देने का यही कारण है। जब कलेजे की जरूरत पड़ी तब तुमसे यह न बन पड़ा कि अपना ही कलेजा निकाल कर दे देते। तुम भी तो भक्त थे। तुम दूसरों से माँगते फिरे और उसने बिना आगा पीछे सोचे तुरन्त अपना कलेजा दे दिया। त्याग और प्रेम के आधार पर ही मैं अपने भक्तों पर कृपा करता हूँ और उसी अनुपात से उन्हें श्रेय देता हूँ।"  नारद चुपचाप सुनते रहे। उनका क्रोध शान्त हो गया और लज्जा से सिर झुका लिया।

कथा का सार - कोई केवल नाम जाप करते रहने से ही भगत नहीं हो जाता ! साथ ही ह्दय में त्याग और प्रेम होना भी उतना ही आवश्यक है । जब तक ऐसी स्थिति न बन पड़े, तब तक भक्ति अधूरी है ।

🙏🕉️🚩 सुनील झा 'मैथिल'
SHARE

Gopal Sharma

Hi. I’m maithili blogger. I’m CEO/Founder of maithilifans.in. I’m posted hindu punchang, maithili poem hin di , result, political news, funny jokes quets, bhakti, Business , hd wallpapers, helth tips, my madhubani page admin. maithili film city youtube chainal .

  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment