।।। भल पत्नी के इएह स्वभाव ।।।
दोसर मौगी दिस जौं ताकब,सुनू प्राण!हम जी नहि पैब ।
सब दुख हम बर्दास्त कय सकी मुदा ने इ दुख हम पचैब ।।
कोनो इस्त्रगण सँ जौं कनिञो बात देखै छी किछो करैत ।
सत्त कही देह थर थर काँप'लागय,हिय मे टीस उठैत ।।
हम की कहू,हमर पागलपन इ छी या अतिशय अनुराग ।
अहाँ हमर छी,हमरे टा रहू,हे जीवन के हमर चिराग ।।
हमहुँ बूझि ने पाबि रहल छी,मानी जान सँ अहाँ कें प्राण!।
अहँक प्रेम बिनु जीबि सकी नहि,नहि जीवन के कोनो ठेकान ।।
सोची कौखन अपनहि मोन मे ,कीआ ऐतेक दै छियैन दबाब ।
मुदा मोन फेर कहए,बुझाबय,भल पत्नी के इएह स्वभाव ।।
***************(धीरेन्द्र)*****************
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