तुम ही मेरा रूप हो, तुम ही शेष गीत हो
बंसी में संगीत जैसे, मन की शेष प्रीत हो।
तुम में ही गुथी हूँ मैं, तुम ही आकार शेष
मैं तो जैसे हारती,, तुम ही नेक जीत हो।
पुष्प में पराग जैसे, गंध का संसार तुम
मैं तो पात पीत बनी, तुम ही शेष चिह्न हो।
अब तो शेष रंग गंध, बंसियों सी गूंज तुम
मैं तो रीती धड़कनें, तुम ही नेह रीत हो।
अब हवा संग घुल रही, घुल के भी समा रही
मैं तो जाता प्राण हूँ, तुम ही तो शरीर हो।
अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम
मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो।
~~~~~~|
छोटी सी मेरी बेटी है,
पापा-पापा करती है,
ऑफिस जब मैं जाता हूँ,
वो टाटा-टाटा करती है.
ढले शाम हर दिन जैसे ही,
दरवाज़े पर आती है,
कहाँ रह गये पापा फिर,
वो आजा-आजा करती है.
घर आते ही बैग टटोले,
मंद-मंद मुस्काती है,
क्योँ नहीं लाये बाजा फिर,
वो बाजा-बाजा करती है.
खाना लगते ही टेबल पर,
कँधे पर चढ जाती है,
हॉर्स बनो अब पापा फिर,
वो टुक-टुक घोडा गाती है
~~~~
मेरी बिटिया कितनी प्यारी
मेरी बिटिया कितनी प्यारी ,
रंग बिरंगे फूल लगाये ,
उडती फिरती बगिया क्यारी ,
जब उठती कोयल सी बोले ,
मात पिता के पैर को छुए ,
लगता सूरज उग आया ,
ज्योति - जीवन दुनिया लाया ,
मुस्काती तितली बिजली सी ,
सब को नाच नचाती फिरती ,
माँ की चपला प्यारी फिरकी ,
रामा की बोलो तुम सीता ,
या कान्हा की गीता ,
लक्ष्मी का अवतार है बेटी ,
घर को रोज सजाये ,
दर्द भरा हो दिल में कुछ भी ,
उसको दूर भगाए ,
उसके गम के आगे ,
भाई सब कुछ फीका पड़ जाये ,
तभी तो डोली उठते उसकी ,
सब रोते रह जाएँ ,
अपने दिल के टुकड़े को हम ..
इतने 'दर्द' सहे भी देते ,
क्योंकि रोशन सारा जग होना है ,
मेरा घर .. बस एक कोना है ,
जा बेटी जगमग तू कर दे ,
घर आँगन हर कोना ,
कहीं बना दे सीता प्यारी ,
कहीं राम भरत व् कान्हा ,
जग जननी तू जीवन ज्योति ,
जितने नामकरण सब कम हैं ,
सभी कर्म या सभी धरम हों ,
सभी मूल या सभी मंत्र हों ,
“माँ ’ बिन सभी अधूरा ,
तेरे रूप अनेक हैं बेटी ,
गायत्री , काली या दुर्गा ,
जब जो चाहे धर ले ,
जग का है कल्याण ही होना ,
मन इतना बस निश्चित कर ले .
मेरी लाख दुआएं बेटी तू
ऐसा कर जाये ………….
याद में तेरी मोती छलके
हर अँखियाँ भर आयें .
0 comments:
Post a Comment